लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या
तिरा बदन कोई शमशीर-ए-बे-नियाम है क्या
मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या
असीर-ए-ख़ाक मुझे कर के तू निहाल सही
निगाह डाल के तो देख ज़ेर-ए-दाम है क्या
ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
तिरे लबों पे जो रौशन है उस का नाम है क्या
ग़ज़ल
लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या
ज़ेब ग़ौरी