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लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या | शाही शायरी
lagaun hath tujhe ye KHayal-e-KHam hai kya

ग़ज़ल

लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

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लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या
तिरा बदन कोई शमशीर-ए-बे-नियाम है क्या

मिरी जगह कोई आईना रख लिया होता
न जाने तेरे तमाशे में मेरा काम है क्या

असीर-ए-ख़ाक मुझे कर के तू निहाल सही
निगाह डाल के तो देख ज़ेर-ए-दाम है क्या

ये डूबती हुई क्या शय है तेरी आँखों में
तिरे लबों पे जो रौशन है उस का नाम है क्या