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लब पे किसी उजड़ी हुई जागीर का मातम | शाही शायरी
lab pe kisi ujDi hui jagir ka matam

ग़ज़ल

लब पे किसी उजड़ी हुई जागीर का मातम

करामत बुख़ारी

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लब पे किसी उजड़ी हुई जागीर का मातम
हर लफ़्ज़ मिरा हल्क़ा-ए-ज़ंजीर का मातम

दिल में कहीं बुझते हुए अरमानों का नौहा
आँखों में किसी याद की तस्वीर का मातम

हर सोच में संगीन फ़ज़ाओं का फ़साना
हर फ़िक्र में शामिल हुआ तहरीर का मातम

जब से हुआ मालूम कि ये चाँद है पत्थर
करता हूँ मैं अब चाँद की तस्ख़ीर का मातम

हर हर्फ़ मिरा कर्ब-ए-मुसलसल की घुटन में
करता है मिरे ख़ाना-ए-दिल-गीर का मातम