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लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है | शाही शायरी
lab-e-jaan-baKHsh par jo nala hai

ग़ज़ल

लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है

शाद लखनवी

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लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है
अब मसीहा भी मरने वाला है

ख़ून थूका मुदाम सूरत-ए-ज़ख़्म
दिल-ए-नासूर अब तक आला है

रो रहा हूँ मिस्ल-ए-अब्र-ए-बहार
दोंगड़ा मेंह का है न झाला है

वो बला-नोश-ए-रंज-ओ-मेहनत हूँ
ग़म-ए-कौनैन इक निवाला है

हर क़दम पर हैं सैकड़ों पामाल
सरकशों का चलन निराला है

हर मिज़ा पर रवाँ हैं कूदक-ए-अश्क
नय सवारों का यार साला है

अश्क-ए-ख़ूँ रूह पर हैं मिस्ल-ए-शफ़क़
रंग किस शोख़ ने उछाला है

फ़र्द-ए-आ'माल नेक-काराँ 'शाद'
क़स्र-ए-फिर्दौस का क़बाला है