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लब-ए-दरिया जो प्यासे मर गए हैं | शाही शायरी
lab-e-dariya jo pyase mar gae hain

ग़ज़ल

लब-ए-दरिया जो प्यासे मर गए हैं

अजीत सिंह हसरत

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लब-ए-दरिया जो प्यासे मर गए हैं
जुनूँ का नाम रौशन कर गए हैं

हुसैनी क़ाफ़िला जब याद आया
कटोरे आँसुओं से भर गए हैं

जिन्हें सूरज ने भी देखा न होगा
वो नंगे पाँव नंगे सर गए हैं

वो कब के जा बसे उस पार लेकिन
कई यादें यहाँ भी धर गए हैं

जिन्हें था शौक़ मेला देखने का
वो सारे लोग अपने घर गए हैं

हमारे अहद का ये अलमिया है
उजाले तीरगी से डर गए हैं

तू उन को ढूँढता फिरता है 'हसरत'
जो दुनिया से किनारा कर गए हैं