लालच से और जौर-ओ-जफ़ा से नहीं बनी
अपनी ज़मीन वाले ख़ुदा से नहीं बनी
ख़ुशियों के साथ रह न सके एक पल कभी
या'नी चिराग़ियों की हवा से नहीं बनी
सुनने की हद तलक उसे इक बार क्या सुना
कानों की फिर किसी भी सदा से नहीं बनी
अपनी अना की रेत पे अपने उसूल पे
पाला वो दर्द जिस की दवा से नहीं बनी
हम ने इसी ज़मीन पे 'फ़ानी' खिलाए फूल
मुद्दत से जिस ज़मीं की घटा से नहीं बनी
ग़ज़ल
लालच से और जौर-ओ-जफ़ा से नहीं बनी
फ़ानी जोधपूरी