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लाख जल्वे हैं निगाहों में नज़ारों की तरह | शाही शायरी
lakh jalwe hain nigahon mein nazaron ki tarah

ग़ज़ल

लाख जल्वे हैं निगाहों में नज़ारों की तरह

मोहन जाविदानी

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लाख जल्वे हैं निगाहों में नज़ारों की तरह
दिल के गुलशन में वो आए हैं बहारों की तरह

हर घड़ी एक नया रंग नया आलम है
ज़िंदगी है तिरी आँखों के इशारों की तरह

ज़िंदगी फिर किसी तूफ़ान से उलझेगी ज़रूर
होंट ख़ामोश हैं दरिया के किनारों की तरह

कितनी पुर-नूर हुई जाती है अब मंज़िल-ए-शौक़
नक़्श-ए-पा उन के चमकते हैं सितारों की तरह

शोला-ए-इश्क़ का बुझना नहीं आसाँ 'मोहन'
अश्क आँखों से ढलकते हैं शरारों की तरह