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क्यूँ ज़ीस्त का हर एक फ़साना बदल गया | शाही शायरी
kyun zist ka har ek fasana badal gaya

ग़ज़ल

क्यूँ ज़ीस्त का हर एक फ़साना बदल गया

आनंद नारायण मुल्ला

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क्यूँ ज़ीस्त का हर एक फ़साना बदल गया
ये हम बदल गए कि ज़माना बदल गया

सय्याद याँ वही वही ताइर वही हैं दाम
लेकिन जो ज़ेर-ए-दाम था दाना बदल गया

बाज़ी-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में कुछ हार है न जीत
नज़रें मिलीं दिलों का ख़ज़ाना बदल गया

बख़्त-ए-बशर वही है बिसात-ए-जहाँ वही
हर दौर-ए-नौ में मात का ख़ाना बदल गया

ताक़त के दोश पर है अज़ल से बशर की लाश
बस थोड़ी थोड़ी दूर पे शाना बदल गया

महफ़िल के हस्ब-ए-ज़ौक़ है मुतरिब का साज़ भी
महफ़िल बदल गई तो तराना बदल गया

इन दाग़-हा-ए-दिल में कोई ज़ख़्म-ए-नौ नहीं
शायद किसी नज़र का निशाना बदल गया

'मुल्ला' को ज़ोर-ए-तब्अ हुआ फ़ैसलों की नज़्र
दरिया अभी वही है दहाना बदल गया