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क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश | शाही शायरी
kyun ho na gir ke kasa-e-tadbir pash pash

ग़ज़ल

क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश

ज़ेबा

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क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश
है संग-ए-ग़म से शीशा-ए-तक़दीर पाश पाश

है ख़ून-ए-बे-गुनह से जिगर रेश-ए-तेग़ भी
जौहर नहीं ये है तन-ए-शमशीर पाश पाश

तीर-ए-निगह ने दिल मिरा ग़िर्बाल कर दिया
ज़ख़्मों से हो गया तन-ए-नख़चीर पाश पाश

तेग़-ए-ज़बान-ए-यार से मजरूह है जिगर
होता है दिल मिरा दम-ए-तक़रीर पाश पाश

ऐ तेग़-ए-क्लिक लिख वो मज़ामीन-ए-त'निया
दिल हासिदों के हों दम-ए-तहरीर पाश पाश

'ज़ेबा' ग़ज़ल तो तुम ने कही इस ज़मीं में ख़ूब
साबित हर इक जगह है ब-तदबीर पाश पाश