EN اردو
क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़ | शाही शायरी
kya satate ho raho banda-nawaz

ग़ज़ल

क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

;

क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़
कि नहीं ख़ूब ये ख़ू बंदा-नवाज़

बे-सबब बे-वज्ह ओ बे-तक़सीर
इस क़दर ग़ुस्सा न हो बंदा-नवाज़

ज़ुल्म नाहक़ न करो कोई दिन
जियो और जीवने दो बंदा-नवाज़

मय-कशो बीच न बैठो हरगिज़
ख़ून मेरा न पियो बंदा-नवाज़

इत्र को मल के न आओ हम पास
ज़ब्ह करती है ये बू बंदा-नवाज़

कब तलक अपनी कहे जाओगे
बात मेरी भी सुनो बंदा-नवाज़

वाजिब-उल-क़त्ल तुम्हारा मैं हूँ
और का नाम न लो बंदा-नवाज़

गो कि सब मुझ को बुरा कहते हैं
तुम ज़बाँ सीं न कहो बंदा-नवाज़

किस का मुँह है जो तिरे सन्मुख हो
हो न हो आईना हो बंदा-नवाज़

जा तिरी चश्म में मेरी है जा
सर्व हो है लब-ए-जू बंदा-नवाज़

वस्फ़-ए-काकुल में सदा गोया है
जो ज़बाँ हर सर-ए-मू बंदा-नवाज़

दिल से 'हातिम' ब-ख़ुदा बंदा है
दूर ख़िदमत से है गो बंदा-नवाज़