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क्या नज़र आएगा नाज़िर मेरे | शाही शायरी
kya nazar aaega nazir mere

ग़ज़ल

क्या नज़र आएगा नाज़िर मेरे

पवन कुमार

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क्या नज़र आएगा नाज़िर मेरे
ज़ख़्म ग़ाएब हैं ब-ज़ाहिर मेरे

फिर मुझे दोस्त मिले पत्थर के
आइने टूट गए फिर मेरे

इन में किस को नज़र-अंदाज़ करूँ
सामने हैं जो मनाज़िर मेरे

दुश्मनों से मुझे पहचान मिली
काम आए वही आख़िर मेरे

इश्क़ की राह में ख़तरे हैं बहुत
सोच लेना ये मुसाफ़िर मेरे

दर्द सीने में जो पोशीदा थे
अश्क वो कर गए ज़ाहिर मेरे

लिखने बैठा है कहानी मेरी
थक न जाए तू मुहर्रिर मेरे