क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही
लेकिन वो आँख थी कि बराबर झुकी रही
मेले में ये निगाह तुझे ढूँडती रही
हर मह-जबीं से तेरा पता पूछती रही
जाते हैं ना-मुराद तिरे आस्ताँ से हम
ऐ दोस्त फिर मिलेंगे अगर ज़िंदगी रही
आँखों में तेरे हुस्न के जल्वे बसे रहे
दिल में तिरे ख़याल की बस्ती बसी रही
इक हश्र था कि दिल में मुसलसल बपा रहा
इक आग थी कि दिल में बराबर लगी रही
मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब था
ये वो नशिस्त थी जो सहर तक जमी रही
शाम-ए-विदा-ए-दोस्त का आलम न पूछिए
दिल रो रहा था लब पे हँसी खेलती रही
खुल कर मिला न जाम ही उस ने कोई लिया
'रहबर' मिरे ख़ुलूस में शायद कमी रही

ग़ज़ल
क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही
राजेन्द्र नाथ रहबर