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क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा | शाही शायरी
kya KHabar thi inqalab aasman ho jaega

ग़ज़ल

क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा

हुसैन मीर काश्मीरी

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क्या ख़बर थी इंक़लाब आसमाँ हो जाएगा
क़ोरमा क़लिया नसीब-ए-अहमक़ां हो जाएगा

ज़ुल्मत-ए-बातिल के दामन में छुपेगा नूर-ए-हक़
दाल की आग़ोश में क़ीमा निहाँ हो जाएगा

केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन
और शरीफ़ों के लिए आटा गिराँ हो जाएगा

कंट्रोल उस के लब-ए-शीरीं पे गर यूँ ही रहा
खांड का शर्बत नसीब-ए-दुश्मनाँ हो जाएगा

ऐ भुने तीतर न डर बावर्चियों की क़ैद से
पेट मेरा तेरी ख़ातिर आशियाँ हो जाएगा

ऐ सिकंदर मुर्ग़ का है शोरबा आब-ए-हयात
ख़िज़्र भी इस को अगर पी ले जवाँ हो जाएगा

जब ये कहता हूँ कि कुछ सामान-ए-दावत कीजिए
वो ये कह कर टाल देते हैं कि हाँ हो जाएगा