EN اردو
क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू | शाही शायरी
kya karega ja ke baitullah tu

ग़ज़ल

क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू

रासिख़ अज़ीमाबादी

;

क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू
दिल ही से कर अपनी पैदा राह तू

डूब जा बहर-ए-अमीक़-ए-इ'श्क़ में
यूँ न हरगिज़ ले सकेगा थाह तू

घर से निकलेगा वो अपनी रात को
मत निकलिए देखियो ऐ माह तू

का'बा ढह जावे तो बन सकता है फिर
देखिए दिल है इसे मत ढाह तू

हाल-ए-दिल थोड़ा सा सुन कर बोल उठा
बस अब इस क़िस्से को कर कोताह तू

यार के दिल तक असर के साथ जा
आसमाँ तक जा न जा ऐ माह तू

वाजिबुत्ता'ज़ीर है 'रासिख़' प हैफ़
क़द्र से उस की नहीं आगाह तू