क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू
दिल ही से कर अपनी पैदा राह तू
डूब जा बहर-ए-अमीक़-ए-इ'श्क़ में
यूँ न हरगिज़ ले सकेगा थाह तू
घर से निकलेगा वो अपनी रात को
मत निकलिए देखियो ऐ माह तू
का'बा ढह जावे तो बन सकता है फिर
देखिए दिल है इसे मत ढाह तू
हाल-ए-दिल थोड़ा सा सुन कर बोल उठा
बस अब इस क़िस्से को कर कोताह तू
यार के दिल तक असर के साथ जा
आसमाँ तक जा न जा ऐ माह तू
वाजिबुत्ता'ज़ीर है 'रासिख़' प हैफ़
क़द्र से उस की नहीं आगाह तू
ग़ज़ल
क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू
रासिख़ अज़ीमाबादी