EN اردو
क्या बराबर का मोहब्बत में असर होता है | शाही शायरी
kya barabar ka mohabbat mein asar hota hai

ग़ज़ल

क्या बराबर का मोहब्बत में असर होता है

जिगर मुरादाबादी

;

क्या बराबर का मोहब्बत में असर होता है
दिल इधर होता है ज़ालिम न उधर होता है

हम ने क्या कुछ न किया दीदा-ए-दिल की ख़ातिर
लोग कहते हैं दुआओं में असर होता है

दिल तो यूँ दिल से मिलाया कि न रक्खा मेरा
अब नज़र के लिए क्या हुक्म-ए-नज़र होता है

मैं गुनहगार-ए-जुनूँ मैं ने ये माना लेकिन
कुछ उधर से भी तक़ाज़ा-ए-नज़र होता है

कौन देखे उसे बेताब-ए-मोहब्बत ऐ दिल
तू वो नाले ही न कर जिन में असर होता है