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कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे | शाही शायरी
kuchh tumhaari anjuman mein aise diwane bhi the

ग़ज़ल

कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे

गुलाम जीलानी असग़र

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कुछ तुम्हारी अंजुमन में ऐसे दीवाने भी थे
जो ब-कार-ए-ख़्वेश दीवाने भी फ़रज़ाने भी थे

यूँ तो हर सूरत पे था बेगानगी का शाइबा
उन में कुछ ऐसे भी थे जो जाने-पहचाने भी थे

सब ब-तौफ़ीक़-ए-मुरव्वत दोस्ती करते रहे
लोग क्या करते कि ख़ुद उन के सनम-ख़ाने भी थे

तू ने अपनी आगही के ज़र्फ़ से जाँचा मुझे
आगही ना-आगही के और पैमाने भी थे

दिल के जाने का ब-हर-सूरत बहुत सदमा हुआ
उस से वाबस्ता कई लोगों के अफ़्साने भी थे