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कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम | शाही शायरी
kuchh to Thahre hue dariya mein rawani karen hum

ग़ज़ल

कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम

सालिम सलीम

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कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम
आओ दुनिया की हक़ीक़त को कहानी करें हम

अपने मौजूद में मिलते ही नहीं हैं हम लोग
जो है मादूम उसे अपनी निशानी करें हम

पहले इक यार बनाएँ कोई उस के जैसा
और फिर ईजाद कोई दुश्मन-ए-जानी करें हम

जब नया काम ही करने को नहीं है कोई
बैठे बैठे यूँ ही इक चीज़ पुरानी करें हम

हिज्र के दिन तो हुए ख़त्म बड़ी धूम के साथ
वस्ल की रात है क्यूँ मर्सिया-ख़्वानी करें हम