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कुछ न ईधर है ने उधर तू है | शाही शायरी
kuchh na idhar hai ne udhar tu hai

ग़ज़ल

कुछ न ईधर है ने उधर तू है

मीर मोहम्मदी बेदार

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कुछ न ईधर है ने उधर तू है
जिस तरफ़ कीजिए नज़र तू है

इख़्तिलाफ़-ए-सुवर हैं ज़ाहिर में
वर्ना मअनी-ए-यक-दिगर तू है

है जो कुछ तू सो तू ही जाने है
कोई क्या जाने किस क़दर तू है

क्या मह-ओ-महर क्या गुल-ओ-लाला
जब मैं देखा तो जल्वा-गर तू है

किस से तश्बीह दीजिए तुझ को
सारे ख़ूबाँ से ख़ूब-तर तू है

वो तो 'बेदार' है अयाँ लेकिन
उस के जल्वा से बे-ख़बर तू है