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कुछ हसीं यादें भी हैं दीदा-ए-नम के साथ साथ | शाही शायरी
kuchh hasin yaaden bhi hain dida-e-nam ke sath sath

ग़ज़ल

कुछ हसीं यादें भी हैं दीदा-ए-नम के साथ साथ

अब्दुल मलिक सोज़

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कुछ हसीं यादें भी हैं दीदा-ए-नम के साथ साथ
ज़िंदगी में हुस्न भी गोया है ग़म के साथ साथ

दिल तिरे हमराह जाता है कि पाया जाता है
नक़्श-ए-दिल मेरा तिरे नक़्श-ए-क़दम के साथ साथ

उस के साए की तरह देखा नहीं उस से जुदा
हम ने तो यज़्दाँ को पाया है सनम के साथ साथ

ताकि हूँ दोनों की लज़्ज़त से बराबर मुस्तफ़ीद
वो करम फ़रमाते रहते हैं सितम के साथ साथ

'सोज़' उन की चाह में हम ने सदा महसूस की
एक अनजानी सोज़-ए-ग़म के साथ साथ