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कोई शय दिल को बहलाती नहीं है | शाही शायरी
koi shai dil ko bahlati nahin hai

ग़ज़ल

कोई शय दिल को बहलाती नहीं है

बख़्श लाइलपूरी

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कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
परेशानी की रुत जाती नहीं है

हमारे ख़्वाब चोरी हो गए हैं
हमें रातों को नींद आती नहीं है

कोई तितली कमाँ-दारों के डर से
फ़ज़ा में पँख फैलाती नहीं है

हर इक सूरत हमें भाती नहीं है
कोई सूरत हमें भाती नहीं है

जिस आज़ादी के नग़्मे हैं ज़बाँ पर
वो आज़ादी नज़र आती नहीं है

बदन बे-हरकत-ओ-बे-हिस पड़े हैं
लहू की बूँद गरमाती नहीं है

मुसलसल पोश की चाबुक-ज़नी से
मिरी आशुफ़्तगी जाती नहीं है

ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न की 'बख़्श' तोहमत
जलाल-ए-हर्फ़ पर आती नहीं है