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कोई हैरान है याँ कोई दिल-गीर | शाही शायरी
koi hairan hai yan koi dil-gir

ग़ज़ल

कोई हैरान है याँ कोई दिल-गीर

रासिख़ अज़ीमाबादी

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कोई हैरान है याँ कोई दिल-गीर
कहे तू है ये आलम बज़्म-ए-तस्वीर

जले तक का मैं अपने क़द्र-दाँ हूँ
ये चुटकी राख है इक-तुर्फ़ा इक्सीर

निगाह-ए-इज्ज़ कुछ कुछ कारगर थी
सो अब जाती रही उस की भी तासीर

वो दिन क्या बा-हलावत थे कि अहबाब
मुआफ़िक़ थे बहम जूँ शक्कर-ओ-शीर

करूँ क्यूँकर न मैं 'रासिख़' मबाहात
कि हैं उस्ताद मेरे हज़रत-ए-'मीर'