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कोई है जो ग़म नहीं झेलता किसे हर नफ़स में सुकून है | शाही शायरी
koi hai jo gham nahin jhelta kise har nafas mein sukun hai

ग़ज़ल

कोई है जो ग़म नहीं झेलता किसे हर नफ़स में सुकून है

नज्मुस्साक़िब

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कोई है जो ग़म नहीं झेलता किसे हर नफ़स में सुकून है
तिरे चारा-गर को ख़बर नहीं तिरे अपने बस में सुकून है

किसी मस्लहत के ग़ुबार में कहाँ रास्ता नज़र आएगा
उसे जा के देखिए दोस्तो जिसे पेश-ओ-पस में सुकून है

मिरे रास्ते बड़े नर्म-ख़ू वो शुमाल हो कि जुनूब हो
मिरे क़ुल्ज़ुम-ए-ग़म-ए-जावेदाँ तिरे नीले रस में सुकून है

उसे बे-नुमू किसी ख़्वाब ने कहीं गहरी नींद सुला दिया
उसे भा गई हैं कहावतें उसे भी क़फ़स में सुकून है

कभी हादसों से डरा नहीं कभी फ़ैसलों से फिरा नहीं
मिरी बे-यक़ीनियाँ बे-ख़बर मिरी दस्तरस में सुकून है