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कोई फ़िक्र न कोई ग़म है | शाही शायरी
koi fikr na koi gham hai

ग़ज़ल

कोई फ़िक्र न कोई ग़म है

पंकज सरहदी

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कोई फ़िक्र न कोई ग़म है
मेरे साथ मिरा हमदम है

उस के तकल्लुम में है तरन्नुम
और तरन्नुम में सरगम है

आग लगा दे आग बुझा दे
वो शो'ला है वो शबनम है

अभी कहाँ सुलझे हैं मसाइल
अभी तिरी ज़ुल्फ़ों में ख़म है

लोग जिसे कहते हैं मंज़िल
वो भी क़ैद-ए-बेश-ओ-कम है

मिल जाए तस्कीन जहाँ पर
'पंकज' वो ही रश्क-ए-इरम है