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कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने | शाही शायरी
koi bagh sa saja hua mere samne

ग़ज़ल

कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने

इनाम नदीम

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कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने
कि बदन है कोई खिला हुआ मिरे सामने

वही आँख है कि सितारा है मिरे रू-ब-रू
ये चराग़ क्या है जला हुआ मिरे सामने

मिरी ख़्वाब-गाह में रात कैसा ख़ुमार था
कोई जाम सा था धरा हुआ मिरे सामने

मैं खड़ा हुआ था अजीब वहम ओ गुमान में
दर-ए-ख़्वाब शब था खुला हुआ मिरे सामने

कभी लौट आया मैं दश्त से तो ये शहर भी
उसी गर्द में था अटा हुआ मिरे सामने

मिरा रास्ता तिरे रास्ते से अलग हुआ
यही रास्ता था बचा हुआ मिरे सामने