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कितनी मुश्किल से बहला था ये क्या कर गई शाम | शाही शायरी
kitni mushkil se bahla tha ye kya kar gai sham

ग़ज़ल

कितनी मुश्किल से बहला था ये क्या कर गई शाम

हसन कमाल

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कितनी मुश्किल से बहला था ये क्या कर गई शाम
हँसते गाते दिल को पल में तन्हा कर गई शाम

दूर उफ़ुक़ पर किस की आँखें रो रो हो गईं लाल
रेत किनारे किस का आँचल गीला कर गई शाम

आता, चाहे कोई न आता आस तो थी दिन भर
अब क्या रस्ता देखें रस्ता धुँदला कर गई शाम

मेरे बिछड़े दोस्त से कितनी मिलती-जुलती है
आई और आ कर आँखों को दरिया कर गई शाम

दूर पहाड़ी की चोटी पर रोती रह गई धूप
रात अँधेरे से दुनिया का सौदा कर गई शाम

पंछी लौटे माही लौटे तो भी लौट 'हसन'
धरती अम्बर का मंज़र सूना कर गई शाम