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कितनी हसीन लगती है चेहरों की ये किताब | शाही शायरी
kitni hasin lagti hai chehron ki ye kitab

ग़ज़ल

कितनी हसीन लगती है चेहरों की ये किताब

यूसुफ़ आज़मी

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कितनी हसीन लगती है चेहरों की ये किताब
सत्रों के बीच देखिए फैला हुआ अज़ाब

चीख़ों का कर्ब नग़्मों के शोले वरक़ वरक़
एहसास बन रहा है जवाँ दर्द की किताब

मीज़ान-ए-दिल में तौलिए फूलों से हर उमीद
लम्हों में घुल रहा है तमन्नाओं का शबाब

चेहरों पे आज कितने नक़ाबों का बोझ है
ज़ख़्मी है आईनों के समुंदर में हर हिजाब

ये ज़िंदगी है सायों का बिखरा हुआ कफ़न
दश्त-ए-सफ़र है ख़्वाब का फैला हुआ सराब