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कितना जाँ-सोज़ है मंज़र मिरी तन्हाई का | शाही शायरी
kitna jaan-soz hai manzar meri tanhai ka

ग़ज़ल

कितना जाँ-सोज़ है मंज़र मिरी तन्हाई का

रफ़ीक़ ख़याल

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कितना जाँ-सोज़ है मंज़र मिरी तन्हाई का
हौसला मुझ में नहीं अंजुमन-आराई का

मैं ने समझा था जिसे बाइस-ए-तस्कीन-ए-नज़र
उस ने सामान किया है मिरी रुस्वाई का

मेरी बातों में नया रंग कहाँ से आए
मेरे दिल में भी है इक ज़ख़्म शनासाई का

बात तो जब है कि जज़्बों से सदाक़त फूटे
यूँ तो दावा है हर इक शख़्स को सच्चाई का

रूह में जज़्बा-ए-उलफ़त को फ़ुज़ूँ पाता हूँ
जब ख़याल आता है मुझ को तिरी रानाई का

ऐ 'ख़याल' आतिश-ए-एहसास भड़क जाएगी
आप दावा न करें धूप में दानाई का