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किताबों ने गो इस्तिआरों में हम को बताए बहुत से ठिकाने तुम्हारे | शाही शायरी
kitabon ne go istiaron mein hum ko batae bahut se Thikane tumhaare

ग़ज़ल

किताबों ने गो इस्तिआरों में हम को बताए बहुत से ठिकाने तुम्हारे

जोश मलसियानी

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किताबों ने गो इस्तिआरों में हम को बताए बहुत से ठिकाने तुम्हारे
मगर कुछ वज़ाहत से अपना पता दो समझते नहीं हम ये मुबहम इशारे

हर इक फूल गुलशन में ये कह रहा है हर इक जाम-ए-मय से ये हम सुन रहे हैं
ज़माने की नज़रों में घर है उसी का जो हँस हँस के दिन ज़िंदगी के गुज़ारे

न अहल-ए-हरम ने मदद की हमारी न अहल-ए-कलीसा ने ग़म-ख़्वारियाँ कीं
अगर तू भी तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल न छोड़े कहाँ जाएँ फिर हम मुसीबत के मारे

क़दामत-पसंदों पे क्यूँ हँस रहे हो ख़ुदा की क़दामत-पसंदी तो देखो
हज़ारों नहीं बल्कि लाखों बरस से वही कहकशाँ है वही चाँद तारे

मिरे अश्क-ए-ख़ूनीं की गुल-कारियों से ज़माने को रंगीं क़बाएँ मिली हैं
जुनून-ए-मोहब्बत का ये फ़ैज़ समझूँ बयाबाँ में भी हैं चमन के नज़ारे

न ग़म मुझ को गिर्दाब-ए-रंज-ओ-बला का न मुहताज हूँ मैं किसी नाख़ुदा का
सफ़ीने को मौजों की ज़द से बचा कर चला जा रहा हूँ किनारे किनारे

तिरी ख़शमगीं आँख की गर्दिशों ने ज़माने को ज़ेर-ओ-ज़बर कर दिया है
सहारों पे कोई भरोसा करे क्या सहारे तो ख़ुद ढूँडते हैं सहारे

उसी रू-ए-रौशन को हम चाहते हैं उमीदों को तारीक जिस ने किया है
उसी माह-ए-ताबाँ को हम ढूँडते हैं दिखाए हैं दिन को हमें जिस ने तारे

तिरे शौक़ में जो चला जा रहा है जो रस्ते की मुश्किल से घबरा रहा है
कभी अपनी मंज़िल पे जा ही रहेगा मगर शर्त ये है कि हिम्मत न हारे

सुना है कि शाएर हो ऐ 'जोश' तुम भी नज़र बाग़-ए-जन्नत पे क्यूँ है तुम्हारी
मुसद्दस में हाली तो ये कह गए हैं जहन्नम को भर देंगे शाएर हमारे