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किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया | शाही शायरी
kisi ne dur se dekha koi qarib aaya

ग़ज़ल

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

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किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया
अमीर शहर में जब भी कोई ग़रीब आया

हवा में ज़हर घुला पानियों में आग लगी
तुम्हारे ब'अद ज़माना बड़ा अजीब आया

बुरीदा-दस्त बरहना-बदन शिकस्ता-पा
तिरे दयार में क्या क्या न बद-नसीब आया

किसी को अब न सताएगी मर्ग-ए-ना-मालूम
चराग़-ए-दार जले मौसम-ए-सलीब आया

बरस महीनों में हफ़्ते दिनों में ढलने लगे
जो 'राम' दूर था वो वक़्त अब क़रीब आया