किसी भी रौशन ख़याल से आश्ना नहीं है
जो आप अपने जमाल से आश्ना नहीं है
उसे ख़यालों में जैसा चाहूँ तराश लूँगा
अभी नज़र ख़द्द-ओ-ख़ाल से आश्ना नहीं है
अभी तो दा'वा है उस को मुश्किल-पसंदियाें का
अभी वो कार-ए-मुहाल से आश्ना नहीं है
अभी तो मिट्टी महक उठी है नमी को पा कर
अभी वो पानी की चाल से आश्ना नहीं है
मिज़ाज हावी रहा हमेशा ज़रूरतों पर
फ़क़ीर हर्फ़-ए-सवाल से आश्ना नहीं है
ग़ज़ल बराए ग़ज़ल है तेरी 'नदीम' अभी तू
ग़ज़ल के हुस्न-ओ-जमाल से आश्ना नहीं है
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ग़ज़ल
किसी भी रौशन ख़याल से आश्ना नहीं है
नदीम फ़ाज़ली