किसी भी हादसे से ज़िंदगी के हम नहीं डरते
किसी भी हाल में हम हौसला कुछ कम नहीं करते
हम आने वाले कल के वास्ते बेचैन रहते हैं
जो कल गुज़रा है उस कल का कभी मातम नहीं करते
हमारी ज़ात से तकलीफ़ पहुँचे कोई ना-मुम्किन
कोई नाहक़ अगर रूठे तो उस का ग़म नहीं करते
जिन्हें मा'लूम है अश्कों की क़ीमत ऐ मिरे हमदम
किसी के सामने आँखों को अपनी नम नहीं करते
है जिन के दिल में उम्मीद-ओ-यक़ीं की रौशनी बाक़ी
चराग़-ए-आरज़ू की लौ को वो मद्धम नहीं करते
जिन्हें मक़्सद में अपने कामयाबी हो नहीं पाती
वो जिद्द-ओ-जहद करते हैं मगर पैहम नहीं करते
तहम्मुल अपनी फ़ितरत में है शामिल वो कभी 'हस्सान'
मिज़ाज अपना ज़रा सी बात पर बरहम नहीं करते

ग़ज़ल
किसी भी हादसे से ज़िंदगी के हम नहीं डरते
मोहम्मद हाज़िम हस्सान