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किस शहर न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का | शाही शायरी
kis shahr na shohra hua nadani-e-dil ka

ग़ज़ल

किस शहर न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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किस शहर न शोहरा हुआ नादानी-ए-दिल का
किस पर न खुला राज़ परेशानी-ए-दिल का

आओ करें महफ़िल पे ज़र-ए-ज़ख्म नुमायाँ
चर्चा है बहुत बे-सर-ओ-सामानी-ए-दिल का

देख आएँ चलो कू-ए-निगाराँ का ख़राबा
शायद कोई महरम मिले वीरानी-ए-दिल का

पूछो तो उधर तीर-फ़गन कौन है यारो
सौंपा था जिसे काम निगहबानी-ए-दिल का

देखो तो किधर आज रुख़-ए-बाद-ए-सबा है
किस रह से पयाम आया है ज़िंदानी-ए-दिल का

उतरे थे कभी 'फ़ैज़' वो आईना-ए-दिल में
आलम है वही आज भी हीरानी-ए-दिल का