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किस सम्त ले गईं मुझे इस दिल की धड़कनें | शाही शायरी
kis samt le gain mujhe is dil ki dhaDkanen

ग़ज़ल

किस सम्त ले गईं मुझे इस दिल की धड़कनें

ख़ातिर ग़ज़नवी

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किस सम्त ले गईं मुझे इस दिल की धड़कनें
पीछे पुकारती रहीं मंज़िल की धड़कनें

गो तेरे इल्तिफ़ात के क़ाबिल नहीं मगर
मिलती हैं तेरे दिल से मिरे दिल की धड़कनें

मख़मूर कर गया मुझे तेरा ख़िराम-ए-नाज़
नग़्मे जगा गईं तिरी पायल की धड़कनें

लहरों की धड़कनें भी न उन को जगा सकीं
किस दर्जा बे-नियाज़ हैं साहिल की धड़कनें

वहशत में ढूँडता ही रहा क़ैस उम्र भर
गुम हो गईं बगूलों में महमिल की धड़कनें

लहरा रहा है तेरी निगाहों में इक पयाम
कुछ कह रही हैं साफ़ तिरे दिल की धड़कनें

ये कौन चुपके चुपके उठा और चल दिया
'ख़ातिर' ये किस ने लूट लीं महफ़िल की धड़कनें