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किरन में फिर से बदलने लगा ख़याल उस का | शाही शायरी
kiran mein phir se badalne laga KHayal us ka

ग़ज़ल

किरन में फिर से बदलने लगा ख़याल उस का

बेदार सरमदी

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किरन में फिर से बदलने लगा ख़याल उस का
उतर रहा है नए चाँद पर जमाल उस का

गया है शाख़ से वो इस लिए कि शाख़ रहे
हुआ तो बीज की सूरत हुआ ज़वाल उस का

जियूँगा मैं भी हमेशा कि जावेदाँ है वो
मैं जी रहा हूँ कि ये साल भी है साल उस का

वो ले गया है मिरी आँख अपनी बस्ती में
कि मेरे साथ रहे राब्ता बहाल उस का

मैं सिर्फ़ पानी की छागल सही मगर 'बेदार'
हुआ गुलाब मिरे दम से बाल बाल उस का