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किरन किरन ये किसी दीदा-ए-हसद में है | शाही शायरी
kiran kiran ye kisi dida-e-hasad mein hai

ग़ज़ल

किरन किरन ये किसी दीदा-ए-हसद में है

नबील अहमद नबील

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किरन किरन ये किसी दीदा-ए-हसद में है
हर इक चराग़ हमारा धुएँ की ज़द में है

जिसे निकाला है हिंदसों से ज़ाइचा-गर ने
बक़ा हमारी उसी पाँच के अदद में है

हर एक शख़्स की क़ामत को नाप और बता
मिरे अलावा यहाँ कौन अपने क़द में है

घरों के सहन कुछ ऐसे सिकुड़ सिमट गए हैं
हर एक शख़्स मकीं जिस तरह लहद में है

लगे हैं शाख़ों पे जिस दिन से फूल-पात नए
हर एक पेड़ हवेली का चश्म-ए-बद में है

'नबील' ऐसे अधूरे हैं रोज़-ओ-शब जैसे
मिरा अज़ल किसी अंदेशा-ए-अबद में है