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ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है | शाही शायरी
KHwahish-o-KHwab ke aage bhi kahin jaana hai

ग़ज़ल

ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है

अज़ीम हैदर सय्यद

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ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है
इश्क़ के बाब से आगे भी कहीं जाना है

क्यूँ नहीं छोड़ती आख़िर मुझे दुनिया-दारी
माल-ओ-अस्बाब से आगे भी कहीं जाना है

देने वाले तू मुझे नींद न दे ख़्वाब तो दे
मुझ को महताब से आगे भी कहीं जाना है

जाने क्यूँ रोक रही है मुझे अश्कों की क़तार
चश्म-ए-पुर-आब से आगे भी कहीं जाना है

क्यूँ लिपटता है मिरे साथ ये दरिया आख़िर
मुझ को गिर्दाब से आगे भी कहीं जाना है