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ख़्वाब में मंज़र रह जाता है | शाही शायरी
KHwab mein manzar rah jata hai

ग़ज़ल

ख़्वाब में मंज़र रह जाता है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

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ख़्वाब में मंज़र रह जाता है
तकिए पर सर रह जाता है

आ पड़ती है झील आँखों में
हाथ में पत्थर रह जाता है

रोज़ किसी हैरत का धब्बा
आईने पर रह जाता है

दिल में बसने वाला इक दिन
जेब के अंदर रह जाता है

नदिया पर मिलने का वा'दा
मेज़ के ऊपर रह जाता है

साल गुज़र जाता है सारा
और कैलन्डर रह जाता है

आँगन की ख़्वाहिश में कोई
बाम के ऊपर रह जाता है

लग जाती है नाव उस पार
और समुंदर रह जाता है

रुख़्सत होते होते कोई
दरवाज़े पर रह जाता है