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ख़ुशी में दिल के दाग़ को जला जला के पी गया | शाही शायरी
KHushi mein dil ke dagh ko jala jala ke pi gaya

ग़ज़ल

ख़ुशी में दिल के दाग़ को जला जला के पी गया

सरताज आलम आबिदी

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ख़ुशी में दिल के दाग़ को जला जला के पी गया
हवस की तेज़ आँच को बुझा बुझा के पी गया

नज़र के सागरों में जो भरी थी तू ने अर्ग़वाँ
तिरी हसीन आँख से चुरा चुरा के पी गया

नसीहतों के दरमियाँ जो तक रही थी जाम को
उसी निगाह-ए-बद से मैं बचा बचा के पी गया

मिली जो तेरे हाथ से तो हो गया नशा दो-चंद
रक़ीब-ए-रू-सियाह को दिखा दिखा के पी गया

क़लील भी मिली कभी तो की इसी पे इक्तिफ़ा
बढ़ी हुई तलब को मैं दबा दबा के पी गया

झुकी झुकी निगाह में हज़ार कैफ़-ओ-मस्तियाँ
उसी निगाह-ए-नाज़ को उठा उठा के पी गया

फ़लक पे काली बदलियाँ क़रीब-ए-रूह-ए-दिलकशी
पियाले से पियाले को मिला मिला के पी गया