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ख़ुश हूँ कब दिल की दास्ताँ कह कर | शाही शायरी
KHush hun kab dil ki dastan kah kar

ग़ज़ल

ख़ुश हूँ कब दिल की दास्ताँ कह कर

ओम कृष्ण राहत

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ख़ुश हूँ कब दिल की दास्ताँ कह कर
क्या मिलेगा यहाँ वहाँ कह कर

मअ'नी क्या दे दिए हैं लफ़्ज़ों को
दास्ताँ-गो ने दास्ताँ कह कर

वुसअत-ए-बे-कराँ को हम ही ने
सर चढ़ाया है आसमाँ कह कर

हम ने सच-मुच गुमाँ बना डाला
हर यक़ीं को गुमाँ गुमाँ कह कर

मैं ने रुत्बा दिया है शेरों को
दिल-ए-हस्सास का धुआँ कह कर