ख़ुदा ने किस शहर अंदर हमन को लाए डाला है
न दिलबर है न साक़ी है न शीशा है न प्याला है
पिया के नाँव की सिमरन किया चाहूँ करूँ किस सीं
न तस्बीह है न सिमरन है न कंठी है न माला है
ख़ुबाँ के बाग़ में रौनक़ हुए तो किस तरह याराँ
न दोना है न मरवा है न सौसन है न लाला है
पियाँ के नाँव आशिक़ कूँ क़त्ल अजब देखे
न बर्छी है न कर्छी है न ख़ंजर है न भाला है
'बरहमन' वास्ते अश्नान के फिरता है बगियाँ सीं
न गंगा है न जमुना है न नद्दी है न नाला है

ग़ज़ल
ख़ुदा ने किस शहर अंदर हमन को लाए डाला है
पंडित चंद्र भान बरहमन