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ख़ुद को नज़र के सामने ला कर ग़ज़ल कहो | शाही शायरी
KHud ko nazar ke samne la kar ghazal kaho

ग़ज़ल

ख़ुद को नज़र के सामने ला कर ग़ज़ल कहो

कुंवर बेचैन

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ख़ुद को नज़र के सामने ला कर ग़ज़ल कहो
इस दिल में कोई दर्द बिठा कर ग़ज़ल कहो

अब तक तो मय-कदों पे ही तुम ने ग़ज़ल कही
होंटों से अब ये जाम हटा कर ग़ज़ल कहो

महफ़िल में आज शम्अ' जलाने के दिन गए
तारीकियों में दिल को जला कर ग़ज़ल कहो

ग़ज़लें भी आदमी की इबादत हैं दोस्तो
इस इश्क़ की नदी में नहा कर ग़ज़ल कहो

रह तो लिए हो इतने दिनों चाँदनी के साथ
अब ज़िंदगी की धूप में आ कर ग़ज़ल कहो

कोई तुम्हारे दिल में न उतरे तो ऐ 'कुँवर'
तुम ही किसी के दिल में समा कर ग़ज़ल कहो