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ख़ुद अपने अक्स को अपनी नज़र में क्या रखना | शाही शायरी
KHud apne aks ko apni nazar mein kya rakhna

ग़ज़ल

ख़ुद अपने अक्स को अपनी नज़र में क्या रखना

मोहम्मद असलम ख़ान असलम

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ख़ुद अपने अक्स को अपनी नज़र में क्या रखना
कि हम ने छोड़ दिया घर में आइना रखना

किसी के पेड़ का साया न आ सके घर में
घरों के बीच में इतना तो फ़ासला रखना

तमाम उम्र ही चाहे उड़ान में गुज़रे
पराई शाख़ पे हरगिज़ न घोंसला रखना

मिरी नज़र भी अंधेरों से ऊब सकती है
कोई चराग़ तो यारो जला हुआ रखना

लो तुम भी शौक़ से 'असलम' से एहतियात रखो
हमें भी आ गया अपनों से फ़ासला रखना