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खोटा तो क्या वो नक़्द खरा है कि हाए हाए | शाही शायरी
khoTa to kya wo naqd khara hai ki hae hae

ग़ज़ल

खोटा तो क्या वो नक़्द खरा है कि हाए हाए

बिस्मिल सईदी

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खोटा तो क्या वो नक़्द खरा है कि हाए हाए
वो ना-सिरा भी आज सिरा है कि हाए हाए

किन मरहलों में क़ाफ़िला गुम हो के रह गया
किस सम्त से सदा-ए-दरा है कि हाए हाए

क्या लोग हैं ये लोग जहाँ क्या जहाँ है ये
क्या कारवाँ है क्या ये सिरा है कि हाए हाए

उड़ता है उस हवा से ब-क़द्र-ए-नफ़स जो है
तस्वीर में वो रंग भरा है कि हाए हाए

नग़्मा सुने तो जान के नौहा लरज़ उठे
कितना ये दिल ग़मों से डरा है कि हाए हाए

क्या दिल का साथ तार-ए-रबाब-ए-नशात दें
किस दर्द से ये नग़्मा-सरा है कि हाए हाए

दोश-ए-वजूद पर मिरे इस ज़िंदगी की लाश
क्या नागवार बोझ धरा है कि हाए हाए

'बिस्मिल' का रंज दिल से भुलाया न जाएगा
किस बेकसी की मौत मरा है कि हाए हाए