खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान
अपना अपना मंदिर मिम्बर अपने रब भगवान
घर जाने की कोई दूजी राह निकाली जाए
आन के रह में बैठ गया है इक जोगी अंजान
ज़ख़्मी सूरज ज़हर में भीगी लो प्यासे पंछी
टूटी बिखरी हिज्र-गली में कुछ शाख़ें बे-जान
अपने दुख का घूँट गला और यार के आँसू ओढ़
उन आँखों के दर्द से बढ़ कर क्या होगा नुक़सान
सिसकी को बहला लेना हिचकी को सहलाना
उम्र गँवा कर मिलता है ये फ़न मेरे नादान
ख़ामोशी की कठिनाई में चुप की बिपता में
उस आवाज़ का शहद घुले तो मिल जाए निरवान
जाना देख आना कुछ रंग अभी बहता होगा
शहर के चौराहे में कल इक ख़्वाब हुआ क़ुर्बान
ऊँचे नीचे दाएँ बाएँ मिट्टी के टीले
आशाओं के सर्द बदन भीतर का क़ब्रिस्तान
आयत आयत नूर का पैकर हर्फ़ हर्फ़ महकार
दो 'सीमाब' सिफ़त होंटों पर थी सूरा रहमान

ग़ज़ल
खोट की माला झूट जटाएँ अपने अपने ध्यान
सीमाब ज़फ़र