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खो के दिल मेरा तुम्हें ना-हक़ पशेमानी हुई | शाही शायरी
kho ke dil mera tumhein na-haq pashemani hui

ग़ज़ल

खो के दिल मेरा तुम्हें ना-हक़ पशेमानी हुई

जलील मानिकपूरी

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खो के दिल मेरा तुम्हें ना-हक़ पशेमानी हुई
तुम से नादानी हुई या मुझ से नादानी हुई

अल्लाह अल्लाह फूट निकला रंग चाहत का मिरी
ज़हर खाया मैं ने पोशाक आप की धानी हुई

हम को हो सकता नहीं धोका हुजूम-ए-हश्र में
तेरी सूरत है अज़ल से जानी-पहचानी हुई

ऐ सबा मैं और क्या दूँ क़ब्र-ए-मजनूँ के लिए
ख़ाक थोड़ी सी चढ़ा देना मिरी छानी हुई

यार के हाथों हुआ जो कुछ हुआ ऐ तेग़-ए-नाज़
तेरी उर्यानी हुई या मेरी क़ुर्बानी हुई

कर गई दीवानगी हम को बरी हर जुर्म से
चाक-दामानी से अपनी चाक-दामानी हुई

बाढ़ दी बाँकी अदाओं ने जो ख़ंजर को 'जलील'
ज़ब्ह करने में मिरे क़ातिल को आसानी हुई