खो के देखा था पा के देख लिया
हर तरह दिल दिखा के देख लिया
फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब
उस ने फिर मुस्कुरा के देख लिया
याद कुछ भी रहा न उस के सिवा
हम ने उस को भुला के देख लिया
ज़िंदगी ने ख़ुशी के धोके में
रब्त ग़म से बढ़ा के देख लिया
ऐसे बिछड़े कि फिर मिले न कभी
ख़ूब दामन छुड़ा के देख लिया
ख़्वाब मुबहम ख़याल बे-म'अनी
रंज-ए-दूरी उठा के देख लिया
कितने बीते दिनों का ग़म था 'सहर'
आज जिस ने रुला के देख लिया
ग़ज़ल
खो के देखा था पा के देख लिया
अबु मोहम्मद सहर