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खेतों के बीच फूल के बिस्तर के आस-पास | शाही शायरी
kheton ke beach phul ke bistar ke aas-pas

ग़ज़ल

खेतों के बीच फूल के बिस्तर के आस-पास

मर्ग़ूब असर फ़ातमी

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खेतों के बीच फूल के बिस्तर के आस-पास
मौसम तो आ के बैठ मिरे घर के आस-पास

बे-क़ैद-ओ-बंद कौंदती रंगीन मछलियाँ
देखी हैं मैं ने गाँव के पोखर के आस-पास

ये क्या हुआ कि आज बहुत तेज़ धूप है
साया मिला न शाख़-ए-तनावर के आस-पास

सरसों के किश्त-ज़ार में ऐसा लगा कि हूँ
फ़ितरत की छींट-दार सी चादर के आस-पास

मुझ को न सत्ह-ए-आब पे कुछ भी मिला 'असर'
ग़ोता लगा के पहुँचा हूँ गौहर के आस-पास