EN اردو
ख़याल उसी की तरफ़ बार बार जाता है | शाही शायरी
KHayal usi ki taraf bar bar jata hai

ग़ज़ल

ख़याल उसी की तरफ़ बार बार जाता है

अख़्तर नज़्मी

;

ख़याल उसी की तरफ़ बार बार जाता है
मिरे सफ़र की थकन कौन उतार जाता है

ये उस का अपना तरीक़ा है दान करने का
वो जिस से शर्त लगाता है हार जाता है

ये खेल मेरी समझ में कभी नहीं आया
मैं जीत जाता हूँ बाज़ी वो मार जाता है

मैं अपनी नींद दवाओं से क़र्ज़ लेता हूँ
ये क़र्ज़ ख़्वाब में कोई उतार जाता है

नशा भी होता है हल्का सा ज़हर में शामिल
वो जब भी मिलता है इक डंक मार जाता है

मैं सब के वास्ते करता हूँ कुछ न कुछ 'नज़मी'
जहाँ जहाँ भी मिरा इख़्तियार जाता है