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ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था | शाही शायरी
KHatar hawa-e-muKhaalif ka darmiyan mein tha

ग़ज़ल

ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था

नवाज़ असीमी

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ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था
मगर परिंदा मगन अपनी ही उड़ान में था

हमारा जुर्म तो यकसाँ था पर गिरफ़्त के बा'द
वो शख़्स हो के न हो मैं तो इम्तिहान में था

हमें हमारी ज़बाँ में सज़ा सुनाई गई
मगर क़ुसूर लिखा जाने किस ज़बान में था

तमाम शहर पे ग़ालिब था धूप का लश्कर
फ़सील-ए-शहर के बाहर मैं साएबान में था

वतन-परस्तों ने तारीख़ ही बदल डाली
नहीं तो ज़िक्र हमारा भी दास्तान में था

मए' मुसाफ़िर-ओ-मल्लाह नाव डूब गई
'नवाज़' नक़्स रखा जैसे बादबान में था