ख़ता अंजाम हो कर रह गया है
बशर नाकाम हो कर रह गया है
तिरा मिलना बक़ैद-ए-ज़िंदगानी
ख़याल-ए-ख़ाम हो कर रह गया है
फ़रेब-ए-ए'तिबार-ए-सई-ए-पैहम
मिरा अंजाम हो कर रह गया है
हर इक उनवाँ बयाज़-ए-आरज़ू का
तिरा पैग़ाम हो कर रह गया है
दिल-ए-नाकाम का हर दाग़-ए-हसरत
सवाद-ए-शाम हो कर रह गया है
वफ़ा का नाम 'फ़ारिग़' इस जहाँ में
बराए-नाम हो कर रह गया है

ग़ज़ल
ख़ता अंजाम हो कर रह गया है
लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़