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ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात | शाही शायरी
KHat mein kya kya likhun yaad aati hai har baat pe baat

ग़ज़ल

ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात

बासिर सुल्तान काज़मी

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ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
यही बेहतर कि उठा रख्खूँ मुलाक़ात पे बात

रात को कहते हैं कल बात करेंगे दिन में
दिन गुज़र जाए तो समझो कि गई रात पे बात

अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
अब किया करते हैं हम सूरत-ए-हालात पे बात

लोग जब मिलते हैं कहते हैं कोई बात करो
जैसे रक्खी हुई होती हो मिरे हात पे बात

मिल न सकने के बहाने उन्हें आते हैं बहुत
ढूँड लेते हैं कोई हम भी मुलाक़ात पे बात

दूसरों को भी मज़ा सुनने में आए 'बासिर'
अपने आँसू की नहीं कीजिए बरसात पे बात